क़ौमी मुसाफिर बाबा प्रभाती
क़ौमी मुसाफिर बाबा प्रभाती, किसी परिचय के मोहताज नहीं थे। क़ौमी मुसाफिर उनका कोई मूल नाम नहीं था। बुलन्द आवाज के धनी बाबा प्रभाती ने मृत्युभोज, अन्धविश्वास, पाखंडवाद, छुआछूत (अस्प्रशस्ता), बालविवाह, अशिक्षा, दहेज प्रथा, शराब पीने-मिलाने शानो शौकत जैसी समाज में फेली अनेको कुरूतियो को समाप्त करने के लिए, भारत के कई राज्यों में अपने साथियों संग भ्रमण किया, जिस कारण उनका नाम क़ौमी मुसाफ़िर पड़ा। उनके मार्गदर्शक बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने ही इनको इस नाम की उपाधि दी थी । बाबा प्रभाती शोषित और सामाजिक क्रांति के महान दर्शन से अभिप्रेरित थे, वह महात्मा बुध के विशाल दर्शनिक व्याख्याओं से प्रवाहित होकर डॉ अंबेडकर के सामाजिक आंदोलन के महान योद्धा थे। उनका एक कथन बार बार याद आता है कि शिक्षा एवं राजनीति ही वह सफलता की कुंजी है जिसमें तमाम समस्याओं के ताले खोले जा सकते हैं।
बाबा प्रभाती का जन्म सन् 1885 जिला भरतपुर (राजस्थान) के ग्राम कामा में हुआ। बाल अवस्था में ही उनके पिताजी नत्थू और माता गंगा देवी जी का देहांत हो गया था। बाबा प्रभाती पढ़े लिखे तो नहीं थे लेकिन गुने हुए बहुत थे। माता पिता के देहांत के पश्चात छोटी सी उम्र में ही अपनी बहन सोमवती और जीजा मुन्ना रेवाड़िया संग दिल्ली आ गए थे । बाबा प्रभाती का विवाह 16 वर्ष की आयु में श्रीमती चमेली देवी के साथ हुआ। सरकारी नौकरी उत्कृष्ट सेवा के लिए बाबा प्रभाती को कृषि संस्थान, पूसा इंस्टिट्यूट से चौधरी (हेड गार्डनर) का पद प्राप्त हुआ था।
बाबा प्रभाती राष्ट्र भक्त के रूप में जाति सुधारक आन्दोलनों का सफलता पूर्व के संचालन ही नहीं किया बल्कि वह राष्ट्र के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थे। स्वतन्त्रता संग्राम में अनेको बार हिस्सा लेते रहे और समाज को भी इन आन्दोलनों में भाग लेने के लिए प्रेरित करते रहे। वह धर्म के आधार पर राष्ट्र विभाजन के पक्ष में नहीं थे और इन्होंने 1947 में राष्ट्र के विभाजन का विरोध किया था और इससे पूर्व 1932 में जात के आधार पर जब राष्ट्र विभाजन की बात उठी तो उन्होंने प्रबल रूप से इसका विरोध करते हुए दलितो और महिलाओं के लिए विशेष सुविधाओ और आरक्षण की माँग का समर्थन किया। इस प्रकार वह राष्ट्र का एकजुट रखने के पक्षधर थे ।
बाबा प्रभाती का अपने समकालीन समय के सबसे पावरफुल नेताओं जैसे महात्मा गांधी, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ भीमराव अंबेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, इंदिरा गाँधी, बाबू जगजीवन राम और कांशीराम से बहुत अच्छे मधुर संबंध थे। सर्वप्रथम वह दिल्ली में किसी बड़े अफ़सर की बागवानी में माली का कार्य किया । कुछ समय पश्चात प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरु के घर तीन मूर्ति भवन पर बागवानी की । नेहरू के कोट की अचकन के लिए गुलाब का फूल ज्यादातर वे ही देते थे । नेहरू भी उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित थे। महात्मा गांधी की जब बहुत ज्यादा तबीयत खराब हुई, तो डॉक्टर ने सुबह और शाम बकरी का दूध पीने की सलाह दी, तब बाबा प्रभाती ने महात्मा गांधी को उपहार स्वरूप भेंट में दो बकरियां दी थी । वे इस सदी के महान योद्धा डॉ० भीमराव अम्बेडकर के संयोगवश सम्पर्क में आये । वे प्रतिदिन बाबा साहेब की मेज पर फूलों का गुलदस्ता लगा कर आया करते थे, बाबा साहेब अम्बेडकर ने बाबा प्रभाती से कहा की “देश में समाज बिखरा हुआ है जाओ उन्हें इस फूल के गुलदस्ते की तरह, समाज को आपस में जोड़ने का काम करो ।
समाज का प्रत्येक व्यक्ति इन फूलों के समान है, उन्हे हमें बिखरने नहीं देना है, उन सब को एकजुट करो”। बाबासाहेब अंबेडकर की यह बात बाबा प्रभाती के मन में स्पर्श कर गई और निकल पड़े समाज में फैली अनेकों कुरीतियों को समाप्त करने और समाज को एकजुट करने के लिए। डॉ० अम्बेडकर ने उनके व्यक्तिव में एक संघर्षशील पुरुष की झलक देखते ही उन्हें अपनी विशेष सहयोगियों की टोली में शामिल कर दिया। इस प्रकार डॉ० अम्बेडकर के कारवां में एक और योद्धा का उदय हुआ। बाबा साहेब आंबेडकर के साथ उन्होंने कई राज्यों में दलित आंदोलन में हिस्सा लिया आगे चलकर उन्होंने बाबा साहेब आंबेडकर के मार्गदर्शन में बौद्ध धर्म अपना लिया । इंदिरा गांधी ने रामलीला मैदान से उनको हजारों की भीड़ में बाबा कौमी मुसाफिर के नाम से संबोधित किया था ।
बाबू जगजीवन राम और मान्यवर कांशीराम तो अनेकों बार उनके निवास स्थान मदनगीर में जाकर मुलाकात करते और सामाजिक, राजनीतिक अनेकों विषयो पर चर्चा करते थे । फिर भी उन्होंने उन सभी से अपने लिए कुछ नहीं मांगा। वरना आसनी से राजनीतिक क्षेत्र में तो सांसद, मंत्री तो बन सकते थे। बाबा प्रभाती ने स्पष्ट रूप से कहा था कि मेरी समाजनीति, राजनेतिक दलों से अलग रहकर समाज सेवा करने की है। अतः उनके सहयोगी कार्यकर्ता किसी भी दल का सदस्य क्यों ना हो, वे अपनी बात चाहे कितनी भी कडवी हो, चाहे सामने इंदिरा गांधी हो या बाबू जगजीवन राम बेझिझक कहने से नही हिचकते थे। इसलिये सभी दलो और वर्गों में उनकी इज्जत और डर भी रहता था की बाबा प्रभाती उन्हें कुछ कह ना दे।
सज्जन कुमार, पूर्व सांसद और तत्कालिन मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा को जब वो बोलने उठते थे कहते सुना है, की बाबा आज हमारी लाज रख लेना। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व राज्यपाल (बिहार, हरियाणा) जगन्नाथ पहाड़िया ने अपने जीवन पर आधारित पुस्तक “हाशिया से मुख्यधारा तक” में बाबा प्रभाती जी को अपनी टूटी फूटी गाड़ी के सारथी भगवान कृष्ण के रूप माना है । पूर्व सांसद राजनाथ सोनकर शास्त्री ने अपनी पुस्तक “खटीक जाति की उत्पत्ति और विकास” में बाबा प्रभाती को महात्मा गांधी की उपाधि दी है ।
इस मनीषी ने जहाँ एक ओर समाज में व्याप्त सामाजिक बुराईयों एवं कुरीतियों, बालविवाह, अशिक्षा, शादी-व्याह में दहेज लेने देने, शराब पीने-मिलाने शानो शौकत के दिखावे एवं मृत्यु भोज में लाखों अनावश्यक खर्च करने के विरोध में सर्वप्रथम आवाज़ उठाई। यहां तक बाल विवाह रोकने के कारण उन्होंने अपनी टांग तक तुड़वा डाली और तो और समाज के लोगो से गालियां खाई, उल्टा सीधा, अपशब्द भी सुना । ऐसे अनेकों कार्य जो उन्होंने समाज की भलाई के लिए किए । वहीं दूसरी ओर छुआछूत को खत्म करने के लिए, दलितों की आवाज बुलंद करने के हक एवं सम्मान की लड़ाई के लिए काम किए।
उनका एक वृतांत बहुत प्रचलित हुआ, सन् 1954 की बात है बाबा प्रभाती अपने कुछ साथियों के साथ एक शादी में राजस्थान के हिंडौन जिले गये । वहां वे बाजार में हजामत करवाने के लिए एक नाई की दुकान पर बैठ गये । नाई ने चेहरे पर साबुन लगाते हुए कहां कि भाई आप कौन जाति से हैं ? यह सुनकर प्रभाती बोले हम मानव जाति से गरीब खटीक कुल के है । यह सुनकर नाई ने तुरंत साबुन लगाना बन्द कर दिया और अपशब्द बोलना शुरू कर दिया। तभी से बाबा प्रभाती ने प्रण किया कि आज से मैं कभी भी आजीवन हजागत और बाल नहीं कटवाऊंगा । उन्होंने ये शब्द कहे ही नहीं थे बल्कि जीवन भर अपनी इस भीष्म प्रतिज्ञा पर अटल रहे। उन्होंने जीवन भर कभी बाल, हजमत नही बनवाई थी ।
अंधविश्वास, पाखंडवाद को समाप्त करने के लिए उनके तो कई वाक्य है जैसे कि त्योहार के मौके पर चौक आदि स्थानों पर मिठाई अंडा जो लोग रख देते थे, तो वह उठा कर वे खा लिया करते थे । शव का खफन उतारकर, अपने लिए कपड़े सिलवाना । हाकिम, तंत्र मंत्र वाले बाबाओं की खूब पोल पट्टी खोली है, उनका सबके सामने फर्दाफाश किया है। इस प्रकार वे जादू टोना, भूत प्रेत का जोरदार खंडन करते थे । घोड़ा गाड़ी चलाने वाले, गांव, शहर के बेरोजगार युवकों को भारी मात्रा दिल्ली हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट में माली पद की नौकरी दिलवाने में सहयोग किया । उन्होंने संत दुर्बल नाथ का सर्वप्रथम पूरे भारतवर्ष में प्रचार प्रसार का कार्य भी किया। अनेकों लोगों के कई कार्य, तत्कालीन सरकार में मंत्री अफसरों के माध्यम से करवाए । तुलसासिंह तंवर, गंगाराम निर्वाण, रामचंद्र बासवाल, रामकिशन राजौरा, नत्था सिंह नागर आदि प्रमुख साथियों ने बाबा प्रभाती के सभी आंदोलनों में अहम भूमिका निभाई ।
उपासक बाबा प्रभाती कौमी मुसाफिर 114 वर्ष की दीर्घायु में 9 अगस्त 1998 को सायं 5 बजे निर्वाण को प्राप्त हुए और महात्मा बुद्ध की शरण में चले गए। बाबा प्रभाती के देहांत खबर सुनकर लाखों दलित, शोषित, वंचित समाज के लाखों लोग शोकाकुल हो गए। कुछ घंटों में हजारों कदम उनके निवास स्थान मदनगीर की ओर चल पड़े । उनकी अंतिम यात्रा में हर समाज, जाति, संप्रदाय व् धर्म के लोगों थे, सब में उनकी अंतिम यात्रा में अपना कन्धा देने की तो जैसे होड़ सी लग गई थी। इस प्रकार के इस फूटवाड़े वातावरण में भी राष्ट्रीय एकता व अखंडता का अनूठा उदाहरण पेश कर रही थी बाबा प्रभाती की अंतिम यात्रा। उनकी अन्तिम यात्रा मे उनके पार्थिव शरीर पर नीला एवं पंचशील का वस्त्र चढाया गया तथा सेकड़ों बौद्ध भिक्षु “बुद्धम शरणम् गच्छामि” और कुछ लोग “राम नाम सत्य” के जय घोष के साथ हजारों लोग पैदल चल रहे थे।
उनकी जलती चिता देखकर हजारों चेहरे उस अग्नि से सुरख लाल दिखाई दे रहे थे। मानो वे सब कौमी मुसाफिर के दिखाए मार्ग पर चलने की ना भूलने वाली कसम शपथ ले रहे थे। इस अवसर पर भरे गले से बोलते हुए बिहार के राज्यपाल श्री जगन्नाथ पहाड़िया, पूर्व मुख्यमंत्री राजस्थान ने कहा कि आज हम जब इस महान आत्मा की अंतिम यात्रा में शरीक हो रहे थे तो विभिन्न धर्मों के अनुयाई अपने रीती से अंतिम क्रिया करने करना चाह रहे थे और उसके लिए लड़ रहे थे। किसी भी व्यक्ति के महान होने का इससे बड़ा सबूत और क्या मिल सकता है ? धार्मिक आंदोलन में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले महात्मा कबीर के बाद यह ऐसी पहली महान आत्मा है जिसे यह सम्मान मिला है, मेरा इन्हें शत-शत प्रणाम।
तत्कालीन दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री साहिब सिंह वर्मा ने कहा कि बाबा प्रभाती के निधन से समाज ने अपना एक बहुमूल्य जननायक खो दिया है। वह समाज की रीढ़ की हड्डी, ताकत थे। जीवन पर्यंत उन्होंने समाज को अपना अमूल्य योगदान किया। उनके इस योगदान को समाज हमेशा याद रखेगा । ऐसी महान विभूति को शत-शत प्रणाम।