मानवतावादी समाज के अग्रदूत थे संत देवगिरी जी महाराज | लेखक: विकास खितौलिया
मानवतावादी समाज के अग्रदूत थे संत देवगिरी जी महाराज | लेखक: विकास खितौलिया

मानवतावादी समाज के प्रेरणास्रोत संत देवगिरी जी महाराज

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vikas khitoliya
संपादनकर्ता 
विकास खितौलिया 
(लेखक, शोधकर्ता एवं समाजसेवी)
9818270202

भारत भूमि अवतारों, ऋषि-मुनियों व संत महात्माओं की धरा है। इस पावन भूमि पर बड़े-बड़े साधु-संत पैदा हुए हैं। उन्होंने अपने तप के बल पर लोगों को सच्चाई के रास्ते पर जीने की राह दिखाई। यदि धर्म कहीं है तो सिर्फ यहीं है। यदि संत कहीं हैं तो सिर्फ यहीं हैं। अपने प्रवचनों, विचारों और आत्म ज्ञान प्रकाश से समाज को बदलने का काम किया। गुरु नानक, कबीर दास, महर्षि वाल्मीकि, संत रविदास, संत गाडगे, संत दुर्बलनाथ, संत अछूतानंद जैसे आदि महान संत इस कड़ी में शामिल हुए। इसी कड़ी में शामिल थे संत देवगिरी जी महाराज । जिन्होंने अपने संदेश से दलितों, पिछड़ों, गरीब लोगों को नशीली वस्तुओं का सेवन न करने, जीवों पर दया करने, शिक्षित बनने, छुआछूत, जातपात, पाखंडवाद, अंधविश्वास को खत्म करने तथा सनातन धर्म का प्रचार करने आदि के लिए लोगो को जागृत किया।

संत देवगिरी जी का जन्म आज़ादी से पूर्व 19वीं शताब्दी में भरतपुर जिले के बयाना तहसील के एक छोटे से ग्राम बागरेन में मानव गरीब कुल की खटीक जाति में हुआ था । इनके पिताजी का नाम गंगधार व माताजी का नाम गुलाब कौर था। सन्यासी जीवन से पूर्व महाराज जी का असली नाम देवबुला था । बचपन से ही अलौकिक शक्तियों तथा अपनी माताजी के संस्कारों का प्रभाव बालक देवबुला में दिखाई देने लगा। माता गुलाब कौर को एक महाराज जी ने आर्शीवाद दिया कि तेरी कोख से ऐसा तेजस्वी बालक जन्म लेगा जो भविष्य में इस गांव में छुआछूत जातपात को समाप्त करेगा । जिसे गांव- गांव, शहर-शहर में लोग पूजेंगे और सनातन धर्म की जोत जलाएगा । 

भारतीय सामाजिक व्यवस्था का प्रभाव देवबुला के जीवन पर भी पड़ा। सामाजिक व्यवस्था व जातिय भेदभाव के कारण देवबुला शिक्षा ग्रहण न कर सके, क्योंकि खटीक जाति को भी उस समय निम्न जाति समझा जाता था। शिक्षा ग्रहण न करने के कारण देवबुला को भी अपने पिता जी के पैतृक व्यवसाय भेड़ बकरी पालन में हाथ बटाना पड़ता था। देवबुला बचपन से ही जिज्ञासु व गंभीर प्रवर्ती के थे। जो की समय के साथ गहरी साधना में तब्दील होती चली गई। जब घरवालों को इस बात का पता चला तो वे चिंता में पड़ गए। घरवालों ने जल्दी से देवबुला की शादी की ठान ली परंतु, महाराज जी का मन पारिवारिक मामलों से ऊपर उठ चुका था लेकिन घरवालों के बार-बार निवेदन करने पर महाराज जी को पारिवारिक जीवन में आना पड़ा। देवबुला का विवाह सजातीय व एक सुशील कन्या जिसका नाम लाडो देवी से हुआ, उनका बचपन का नाम गौरा पहाड़िया था, जोकी टोडाभीम राजस्थान की रहने वाली थी ।

देवबुला ने अपना दाम्पत्य जीवन निर्वाह उसी प्रकार किया, जिस प्रकार कीचड़ में कमल अपना असितत्व बनाए रखता है। ग्रस्त जीवन में रहकर भी संत देवगिरी जी मानवता के उत्थान के लिए कार्य करते रहते। प्रतिदिन की भांति देवबूला एक दिन जंगल में भेड़ बकरियां चारा रहे थे । एक साधु ने आवाज़ लगाई बेटा देवगिरी । देवबुला को लगा शयाद किसी और को आवाज़ लगाई इधर उधर देखा तो वहां कोई नहीं था। फिर वह साधु अचानक से देवबुला के समीप आकर कहते की बेटा देवगिरी कैसे हो । देवबुला ने कहा बाबा में देवगिरी नही देवबुला हूं। साधु ने कहा में जनता हूं आगे चलकर तू इसी नाम संसार में जाना पहचाना जाएगा। वह साधु और कोई नही बरखेड़ा वाले संत भोमानंदगिरि जी महाराज थे। उस दिन के पश्चात प्रतिदिन घर से निकल कर महाराज जी बरखेड़ा आश्रम चले जाते हैं वहां संत भोमानंदगिरि जी महाराज के प्रवचन को सुनते और संगत की सेवा करते । प्राणप्रिय संगिनी लाडो देवी की आकस्मिक निधन के बाद उन्होंने निश्चय किया की वह गृहस्थ जीवन त्याग कर बरखेड़ा आश्रम में आजीवन संगत की सेवा करेंगे।

गुरु भोमानंदगिरि जी महाराज से मंत्र भेक दीक्षा धारण करने के बाद गुरुजी ने देवबुला का नाम सार्वजनिक देवगिरी रख दिया । तत्पश्चात गुरु जी की आज्ञानुसार संत देवगिरी जी महाराज ने सभी बच्चों, सगे-सबन्धियों, रिश्तेदारों से भिक्षा माँगकर, पूर्ण रूप से गृहस्थ जीवन का त्याग कर पूर्णरूपेण वैरागी जीवन अपना लिया । गुरुजी ने उपदेश दिया की यदि आपमें जन्म-मरण के भंवर से निकलने की इच्छा है तो मन को अपने वश में करो। योगाभ्यास द्वारा सद्गुरु के दर्शन करके उनमें लीन हो जाओ। कुछ समय पश्चात गुरुजी ने कहा की जायो देवगिरी मानवता के उत्थान में अपना संपूर्ण जीवन लगा दो । आशीर्वाद के रूप में उन्होंने एक रुद्राक्ष की माला महाराज को प्रदान की ओर कहा की वत्स इस रुद्राक्ष की माला में जितने मोती है की उतनी ही वर्ष तुम्हारी आयु होगी। तुम्हे अपनी मृत्यु का आभास पहले ही हो जाएगा । तत्पश्चात गुरुजी आज्ञानुसार संत देवगिरी जी महाराज ने उस माला को लेकर बागरेन के समीप एकांतवास पहाड़ी पर एक गुफ़ा में 108 माह तक घोर लगन तपस्या की ।

तपस्या पश्चात वह सीधे बरखेड़ा आश्रम संत भोमानंदगिरि जी महाराज के पास आशीर्वाद लेने पहुंचे। महाराज जी के तेज देखकर गुरुजी ने संत देवगिरी जी महाराज को कहा की संतजी अब देश भ्रमणकर मानव समाज उत्थान की लो को जगाओ। अपने जीवनकाल में संत देवगिरी जी ने अनेको चमत्कार भी दिखाए । 

तत्पश्चात संत देवगिरी जी महाराज ने अपने ग्राम बागरेन से बाहर जंगल में दो पटेर की कुटिया बनाई और मानव समाज-उत्थान के कार्य में लग गए। सत्संग में अपनी वाणियों के माध्यम से समाज में जागृति लाने का काम करते रहे। धीरे-धीरे जब उनकी ख्याति दूर दूर तक बढ़ने लगी तो शिष्यो की तादात भी बड़ने लगी । महाराज जी की शिष्य वंशवाली में गुवामंद के रामानंदगिरी जी, रूपवास के मोहनगिरि जी, समराया के मनहोरगिरी, कटवाई के वेदगिरी जी, बागरेन के मोहनगिरि जी, जयपुर की साध्वी मीराबाई गिरी जी महाराज इत्यादि हुए ।

सबसे पहले बागरेन में गुरु आश्रम पर महाराज जी की सेवा का कार्यभार तीन शिक्षयो मोहनगीरी (रूपवास), साध्वी मीराबाई जी महाराज (जयपुर), वेदगिरी जी (कटवाई) ने किया । राजस्थान के अलावा महाराज जी दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर- प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों में घूम-घूम कर सत्संग में अपनी वाणियों के माध्यम से लोगों के जीवन को बदल रहे थे। उन्होंने अपने जीवन काल में अयोध्या, वृंदावन, मथुरा, द्वारका, महाकाल, प्रयागराज, काशी, केलादेवी, मदनमोहन, नासिक, गया आदि कई तीर्थस्थानों की यात्रा भी की। सर्वप्रथम महाराज जी अपने शिष्य रामानंदगिरी जी के संग दिल्ली आए थे । 

संत देवगिरी जी ने अपने गुरु के वचनों का पालन कर सत्संग के माध्यम से आपने उपदेश देना आरंभ किया। जन जन के हृदय से घृणा व द्रेष भाव को मिटाया। देशाटन कर अपने ज्ञान अमृत को दिन दुखियो में बाँटा तथा उन्हें सत्य मार्ग दिखया।

धर्म के मार्ग पर चलने की राह दिखाई। सदैव महाराज जी के वचन सत्य होते और मानव कल्याण, दीन दुखियों के कष्टों का निवारण करने के लिए थे । वे सब लोगों के बीच प्रेम-भाई-चारे का संदेश देते थे। छुआछूत, जातपात, पाखंडवाद और समाज में फैले अन्धविश्वास के वह पुरजोर विरोध करते । उनको सामाजिक व्यवस्था के कारण औपचारिक शिक्षा न मिल सकी। इसके बावजूद वे अपने सत्संगो में समाज को शिक्षा ग्रहण करने को प्रोत्साहित करते थे। क्योंकि उस समय देश में शिक्षा का प्रचार-प्रसार ऊँच जातियों में हो रहा था। शिक्षा ग्रहण करके ही वंचित समाज आगे बढ़ सकता था। क्योंकि शिक्षा वह शेरनी का दूध है जो पिएगा वहीं दहाड़ेगा। अपनी वाणियों में पर्यावरण संरक्षण की भी बात करते हैं। वे कहते थे की मनुष्य को प्रकृति के साथ तालमेल बना कर रखना चाहिए।

प्रकृति में इतनी क्षमता है की वो मनुष्य का भरण-पोषण कर सकती है। मनुष्यओं को जीव-जंतुओं की हत्या नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उनके अंदर भी जीवन होता है। जीव हत्या को वो पाप मानते थे। वे कहते थे की हमें जीव जंतुओं के प्रति दया- भाव रखनी चाहिए। तभी पर्यावरण के साथ संतुलन बनेगा। संत देवगिरी जी ने अपने समय में समाज में प्रचलित बाल विवाह का भी विरोध किया था। वे कहते थे की महिलाओं को भी शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। ताकि वे समाज में बराबरी का दर्जा हसिल कर सके।

इस तरह से संत देवगिरी जी ने ताउम्र समाज में प्रचलित कुरीतियों का विरोध करते रहे। अपनी वाणियों और सत्संगो के माध्यम से लोगों की जागरूक करते रहे और जीवनभर एक मानवतावादी समाज की स्थापना में लगे रहे। संत देवगिरी जी ने अपनी मनःइच्छा से 6 माह पूर्व घोषित तिथि को ग्राम बागरेन, तहसील बयाना, जिला भरतपुर, राजस्थान में 23 मई, 2008, मिति ज्येष्ठ वदी तीज संम्वत् 2065, शूक्रवार को प्रातः 5 बजे मानव देह का त्याग किया।

इसी दिन प्रतिवर्ष समाधि स्थल पर सत्संग, हवन, भण्डारा होता है । यहीं स्थान संत देवगिरी जी का एक प्रसिद्ध सिद्ध स्थान है, जो सिद्ध पीठ गुरुद्वारा है। देश के अन्य स्थानों में जयपुर, दिल्ली, लिवाली इत्यादि में कई स्थानों पर आपके आश्रम और मंदिर हैं। लेखक विकास खितौलिया जी ने कहा कि संत देवगिरी जी महाराज ने युगों-युगों तक अपने विचारों और शिक्षाओं से लाखों लोगों का मार्गदर्शन किया और प्रेरणा दी। उन्होंने जीवन पर्यन्त समतामूलक समाज के निर्माण के लिए कार्य किया। इसी कारण उनकी पुण्यतिथि पर आज उन्हें मानवतावादी समाज के अग्रदूत के रूप में याद किया जा रहा है। कुछ दिनों पूर्व उनकी पुण्यतिथि निकली है, आओ संत देवगिरी जी महाराज के बताये मार्ग पर चलकर एक मानवतावादी समाज की स्थापना करें।

Kuldeep Baberwal

Hi there! I'm Kuldeep Baberwal, a passionate technical lead in the IT industry. By day, I lead teams in developing cutting-edge solutions, and by night, I transform into a versatile blogger, sharing insights and musings on various topics that pique my interest. From technology trends to lifestyle tips, you'll find a bit of everything on my blog. Join me on my journey as I explore the endless possibilities of the digital world and beyond!

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