भारत भूमि अवतारों, ऋषि-मुनियों व संत महात्माओं की धरा है। इस पावन भूमि पर बड़े-बड़े साधु-संत पैदा हुए हैं। उन्होंने अपने तप के बल पर लोगों को सच्चाई के रास्ते पर जीने की राह दिखाई। यदि धर्म कहीं है तो सिर्फ यहीं है। यदि संत कहीं हैं तो सिर्फ यहीं हैं। माना कि आजकल धर्म, अधर्म की राह पर चल पड़ा है। माना कि अब नकली संतों की भरमार है फिर भी यही की भूमि ही धर्म और संतो की है।
इन्ही संत महात्माओं ने सामाजिक समरसता एवं वसुधैव कुटुम्बकम्का अहम संदेश भी दिया।इसलिए भारत के प्रत्येक नागरिक ने जयतु भारत वर्ष, जयतु सनातन संस्कृति के भाव को अपने भीतर समेटे रखा है।इस भाव को ही तो सामाजिक समरसता कहा जाता है। जहां भारत देश में विदेशी आक्रांताओं द्वारा अनेकों आक्रमण हुए, अनेकों बार यहां की संस्कृति पर प्रहार हुआ और जिस कारण सभी समाजों में अनेकों कुरीतियों ने जन्म लिया। इन्ही कुरीतियों को अपनी वाणियों एवं संदेशों द्वारा समाप्त करने के लिए अनेकों ऋषि-मुनियों व संत महात्माओं ने भारत भूमि पर जन्म लिया। जब भी कभी मौलिक चितन पर कोई आंच आती है, समय इसका गवाह है कि समाज के भीतर से एक स्वर निकलता है, जो कभी भगवान बुद्ध के रूप में जन्म होता है, तो कभी गुरु नानक, महावीर, कबीर, दयानंद सरस्वती, महर्षि वाल्मीकि, ज्योतिबा फुले, संत दुर्बलनाथ जी महाराज, संत देवगिरी जी महाराज, साहू जी महाराज, महात्मा गांधी, संतु जी लाड, महर्षि व्याघ्र, कौमी मुसाफिर बाबा प्रभाती, डॉ. केशवराम हेडगेवार एवं डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर के रूप में होता है ये सभी इसी परंपरा का हिस्सा है। इसी श्रृंखला में रविदास जी हैं जिन्होंने सामाजिक समरसता के विचार का उद्घोष किया । वह एक उच्च कोटि के साधक और विनीत भगवत् भक्त भी थे। रविदाजी को पंजाब में रविदास कहा तो उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में उन्हें रैदास के नाम से जाना गया। गुजरात और महाराष्ट्र के लोग ‘रोहिदास’ और बंगाल के लोग उन्हें ‘उड़दास’ कहते हैं। कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और तैदास के नाम से भी जाना गया है। कहते हैं कि माध मास की पूर्णिमा को जब रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया।
संत शिरोमणि कवि रविदास का जन्म माध पूर्णिमा को 1376 ईस्वी वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम कमां देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रम्बु) था। उनके दादा का नाम कालूराम जी, दादी का नाम लखपती जी। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था चारों ओर अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा का बोलवाला था। उस समग मुस्लिम शासकों द्वारा प्रयास किया जाता था कि अधिकांश हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया जाए। माता-पिता की बहु व पौत्र की चाहत में, रविदास जी ने गृहस्थ धर्म का पालन किया । उनका विवाह सजातीय व एक सुशील कन्या जिसका नाम लोनाजी से हुआ । विवाह पश्चात उनका एक पुत्र हुआ, जिनका नाम विजय
दासजी था । विवाह बन्धन में बन्धे रविदास जी ने अल्पसमय तक ही सन्तान सुख व गृहस्थ जीवन का सुख भोगकर माता-पिता की आज्ञा का पालन किया। रविदास जी ने अपना दाम्पत्य जीवन निर्वाह उसी प्रकार किया, जिस प्रकार कीचड़ में कमल अपना असितत्व बनाए रखता है। रविदासजी चर्मकार कुल से होने के कारण वे जूते बनाते थे। ऐसा करने में उन्हें बहुत खुशी मिलती थी और वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे। रविदास जी ने अपने विवाह के उपरांत अपने परिवारिक व्यवसाय को ही चुना । संत रविदासजी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। जब भी किसी को सहायता की आवश्यकता होती तो बिना पैसा लिए वे लोगों को जूते दान में दे देते थे। दूसरों की सहायता करना उन्हें अच्छा लगता था। कहीं साधु-संत मिल जाएं तो वे उनकी सेवा करने से पीछे नहीं हटते थे।
संत रविदासजी बचपन से हो भक्ति में लीन रहते थे। उनकी प्रतिभा को जानकर स्वामी रामानंदाचार्य जी ने उन्हें अपना शिष्य बनाया। स्वामी रामानंदाचार्य वैष्णव भक्तिधारा के महान संत थे। संत कबीर, संत पीपा, संत धन्ना और संत रविदास उनके शिष्य थे। संत रविदास तो संत कबीर के समकालीन व गुरुभाई माने जाते हैं। स्वयं कबीरदास जी ने संतन में रविदास कहकर इन्हें मान्यता दी है। संत रविदास ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता पर बल दिया और मानवतावादी मूल्यों की नींव रखी। इतना ही नहीं वे एक ऐसे समाज की कल्पना भी करते है जहां किसी भी प्रकार का लोभ, लालच, दुख, दरिद्रता, भेदभाव नहीं हो। रविदासजी ने सीधे-सीधे लिखा कि रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वो हीं नीच होता है। कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कभी नीच नहीं होता। संत रविदास ने अपनी कविताओं के लिए जनसाधारण की ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। साथ ही इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता यानी उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रविदासजी के लगभग चालीस पद सिख धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ गुरुग्रंथ साहब में भी सम्मिलित किए गए है ।
संत रविदास की ख्याति लगातार बढ़ रही थी जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे जिनमें हरेक जाति के लोग शामिल थे। यह सब देखकर एक परिद्ध मुस्लिम सदना पीर उनको मुसलमान बनाने आया था। उसने सोचा होगा कि यदि रविदास मुसलमान बन जाते हैं तो उनके लाखों भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे। ऐसा सोचकर उन पर हरेक प्रकार से दबाव बनाया गया, लेकिन संत रविदास तो संत थे उन्हें किसी हिन्दू या मुस्लिम से नहीं बल्कि मानवता से मतलब था। सदना पीर जो उन्हें मुसलमान बनाने के लिए आया कुछ समय बात वो स्वयं रविदास जी के साथ हो लिया और सनातन हिन्दू संस्कृति का हिस्सा बन गया जिसका नाम रविदास जी ने रामदास रखा। वहीं सिकंदर लोधी ने रविदास जी को काल कोठारी में डाल दिया लेकिन जब गलती का अहसास हुआ तो जेल से मुक्त कर खुद भी उनका शिष्य बन गया । अलवादी खान एवं बिजली खान भी इनके भक्त थे। वहीं अगर हिन्दू राजघराने की बात करें तो चितौड़गढ़ की रानी कृष्णभक्त मीरा बाई, राजा बेन सिंह, महाराणा सांगा, महारानी झलाबाई ऐसे लगभग 52 राज बादशाह, महारानियों ने गुरु रविदास जी को अपना गुरु माना। वहीं चित्तौड़गढ़ में संत रविदास की छतरी बनी हुई है। उन्होंने वाराणसी में 1540 ईस्वी में अपना देह छोड़ दिया। वाराणसी में संत रविदास का भव्य प्रसिद्ध सिद्ध स्थान है, जो सिद्ध पीठ गुरुद्वारा, मंदिर और मठ है। जहां सभी जाति के लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। वाराणसी में श्री गुरु रविदास पार्क है जो नगवा में उनके यादगार के रुप में बनाया गया है उसमे उनके नाम पर गुरु रविदास स्मारक और पार्क बना है।
रविदास जी को लेकर तमाम शोध पूर्व में भी हुए हैं लेकिन सरल भाषा में कहा जाए तो रविदास जी ‘समता के प्रतीक’ थे। इस वर्ष 24 फरवरी को रविदास जी की जयंती है, ये भारत के लिए गर्व की बात है कि दुनिया के लगभग 150 देशों में रविदास जी की जयंती को मनाया जाता है। वहीं कई देशों की संसद में भी जयंती को धूमधाम से बनाया जाता है । आखिर रविदास जी की वाणी में ऐसा क्या था, जिसे पूरा विश्व मानता है, गुरु रविदास जी की वाणी के कई पक्ष है जिन पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई है उनको जाति व्यवस्था के आलोचक के रूप में ही लोग जानते हैं लेकिन रविदास जी का व्यक्तित्व अपने में बहुत विशाल है और उसके बहुत से पक्ष भी हैं। दो वर्ष पूर्व से ही रविदास जयंती पर दिल्ली और पंजाब राज्य सरकारों ने अल्पकाल में एक दिन का अवकाश घोषित कर चुकी है और तो और प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदीजी रविदास जयंती पर दिल्ली करोल बाग के रेगरपुरा में स्थित संत गुरु रविदास विश्राम धाम मंदिर पूजा अर्चना की और श्रद्धालुओं के साथ बैठकर सत्संग कीर्तन किया । यह अपने आप में
अतुल्य पल था। संत रविदास की 645वी जयंती के मौके पर मोदी जी ने दिल्ली में पूजा अर्चना की, तो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी, पंजाब के पूर्व सीएम चरणजीत सिंह चन्नी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी जी और प्रियंका गांधी जी ने वाराणसी में संत रविदास की जन्मस्थली पर प्रार्थना की और वही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जालंधर में संत रविदास धाम में पूजा की। उसके बाद लाखो नेताओं और लोगो ने मंदिर में जाकर दर्शन किए । कुछ वर्षो पूर्व 2019 में दिल्ली के तुगलकाबाद स्थित रविदास के मंदिर को सरकारी संस्था द्वारा गिराए जाने के बाद सर्वदलित समाज एकजुट हुआ और पुनः उस मंदिर को दोबारा से निर्माण करवाने में अहम भूमिका निभाई थी ।
रविदास जी का जन्म समाज में निचली मानी जाने वाले वर्ग में हुआ था । उनका एक प्रसिद्ध दोहा था मन चंगा तो कटौती में गंगा । अर्थात मन शुद्ध होना चाहिए, कमंडल में जल भी गंगा समान है । बहरहाल रविदास जी ने समाज जीवन को समग्रता के साथ देखा जिस समग्रता की बात बाबा साहब अंबेडकर, डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार आदि ने की थी। जिसमें समाज में समता जातीय भेद का उन्मूलन, सबको शिक्षा, स्वस्थ्य एवं खाद्य की गारंटी । ये सभी मूल चीजों की पहुंच अंतिम व्यक्ति तक हो । इसलिए रविदास जी का महत्व दिनों दिन बढ़ता जा रहा है दुनिया इनको स्मरण कर रही है आज इनकी जयंती पर हम सब इनको स्मरण करते हैं । इस आधार पर देखा जाए तो रविदास जी दुनिया के पहले समाजवादी भी थे।
रविदास जी महाराज की जय ।
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Acha lekh hai…aap acha likhte hai