विवाह में अधिक फिजूलखर्ची, एक सामाजिक कुरीति है
भारत में आजकल शादियों का मौसम है, शादियों में इतना ज़्यादा आडंबर होने लगे हैं कि उसकी देखा देखी लोगों को आशाएं और बढ़ने लगी है। देखा जाए तो शादी का सही मतलब लड़के लड़की को साथ में बिठा कर कसमें खाना, सात फेरे लेकर अपने मजबूत रिश्ते को आगे बढ़ाना है, फिर भी शादी में लोग शादियों में लाखों करोड़ों खर्च कर रहे हैं। आज सबके दिमाग में अनंत अंबानी की शादी के ठाठ बांट हैं। उसकी शादी और शादी से संबंधित सारे उत्सवों के चित्र को भारतीय मीडिया बड़े जोर शोर से उपलब्ध कर चुका है। अनंत अंबानी परिवार की शादी आज भव्यता और अमीरी का उदाहरण बन चुकी है। पर सोचिए, यदि आज अनंत अंबानी की शादी सादगी से होती तो समाज में आज यह इस बात का उदाहरण होती की जब अनंत अंबानी जैसे लोग इतनी सादगी से विवाह कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं? परंतु हम लोग अंबानी की होड़ करने लगते है। हकीकत यह की आप हम अंबानी नही है। यही कारण है, अमीरों के चक्कर में बेचारा गरीब पिस रहा है ।
कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है। अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादियाँ होने लगी हैं। शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है। आगंतुक और मेहमान सीधे वहीं आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं । जिसके पास चार पहिया वाहन है, वही जा पाता है। दोपहिया वाहन वाले नहीं जा पाते है। बुलाने वाला भी यही स्टेटस चाहता है, और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है। कब किसको कोनसे कार्यक्रमों में बुलाना है? अपनापन की भावना खत्म हो चुकी है। सिर्फ मतलब के व्यक्ति या परिवारवालो को ही आमंत्रित किया जाता है।
मुंह देखकर तिलक किया जाता है । पहले जो काम सगे संबंधी रिश्तेदार सब मिलकर काम करते थे, वह काम अब ठेके पर टेंट वाले, कैटरर, वेटर, सजावट वाले को दे दिया जाता है । पहले तो घर की महिलाएं एकत्र होकर रोटी बना देती थीं और दाल-सब्जी घर के मर्द बना देते थे और हलवाई की जरूरत सिर्फ बारातियों और अन्य अतिथियों के बूंदी, लड्डू या अन्य मिठाई बनाने के लिए होती थी। सभी युवा बच्चे दिनभर शादी से संबंधित काम करने के लिए हर समय तत्पर रहते थे, हंसी ठिठोली चलती रहती थीं और समारोह का कामकाज भी समय पर पूरा होता रहता था। परन्तु आज सब कुछ बदल गया है ।
विभिन्न रश्मो तिलक, गोद भराई, हल्दी, भात आदि के अवसर पर बजने वाले वाद्य यंत्रों की जगह कनफोडू डीजे ने ले ली, जिसे शोर से दिल कांपने लगे और दिल के मरीज को कहीं छिपाना पड़ जाए पर अब तो सिर्फ पैसे का दिखावा रह गया है। एक और शादी रस्मो से पहले रिंग सेरेमनी (सगाई) करने का प्रचलन भी कुछ सालों से शुरू हुआ । उसमे भी हाई स्टेटस के चक्कर में अत्यधिक खर्चा कर देते है । पहले तो इतने खर्चे में तो एक शादी हो जाया करती थी ।
महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं। हर किसी को सलमान खान और माधुरी दीक्षित बनना है तो वहीं घर के बुजुर्गों को अमिताभ बच्चन और जया बच्चन बनने की होड़ है। मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे है। मेहंदी में सभी को हरी ड्रेस पहनना अनिवार्य है जो नहीं पहनता है उसे हीन भावना से देखा जाता है, लोअर केटेगरी का मानते हैं फिर हल्दी की रस्म आती है, इसमें भी सभी को पीली ड्रेस पहनना अति आवश्यक है इसमें भी वही समस्या है जो नहीं पहनता है उसकी इज्जत कम होती है। हल्दी, मेंहदी रस्म के दौरान हजारों रूपये खर्च कर के विशेष डेकोरेशन भी की जाती है । पहले तो इतने खर्चे में शादी हो जाया करती थी ।
कुछ वीडियो में तो हल्दी रस्म के दौरान भावी दुल्हन बीयर, बिस्की आदि का सेवन करते हुए रिल्स बनवाती नजर आती है । तेल बिंदोरी रस्म में भावी दुल्हन को बग्गी घोड़ी पर चढ़ाकर, नचा नचा कर पूरी बस्ती में घुमाया जा रहा है । पहले नाचने के लिए महिलाओं को बाहर से बुलाया जाता था और अब घर की महिला ढोल वालों के संग एवं ढोल पर बैठकर नाचती हुई नज़र आ रही है तो कभी डीजे ट्रक पर चढ़कर नाच रही है । यह सब क्या हो रहा है, हम लोग हाई स्टेटस के चक्कर में किधर जा रहे है।
साल 2020 से पूर्व इस हल्दी रस्म का प्रचलन ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं पर भी देखने को नहीं मिलता था, लेकिन पिछले साल दो-तीन साल से इसका प्रचलन बहुत तेजी से ग्रामीण क्षेत्र में भी बहुत बढ़ा है। पहले हल्दी की रस्म के पीछे कोई दिखावा नहीं होता था, बल्कि तार्किकता होती थी। हल्दी के उबटन से घिसघिस कर दूल्हे-दुल्हन के चेहरे व शरीर से मृत चमड़ी और मेल को हटाने, चेहरे को मुलायम और चमकदार बनाने के लिए हल्दी, चंदन, आटा, दूध से तैयार उबटन का प्रयोग करते थे। ताकि दूल्हा-दुल्हन सुंदर लगे। इस काम की जिम्मेदारी घर-परिवार की महिलाओं की थी। परन्तु अब यह पीला ड्रामा घर के मुखिया के माथे पर तनाव की लकीरें खींचता है जिससे चिंतामय पसीना टपकता है।
आजकल देखने में आ रहा है कि आर्थिक रूप से असक्षम परिवार के लड़के, लड़कियां भी इस बनावटीपन में शामिल होकर परिवार पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ा रहे है। क्योंकि उन्हें अपने छुट भईए नेताओं, वन साइड हेयर कटिंग वाले या लम्बे बालों वाले सिगरेट का धुंआ उड़ाते दोस्तों को अपना नकली स्टेटस दिखाना होता है। इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि के लिए रील्स बनानी है। बेटे के रीलबनाने के चक्कर में बाप की कर्ज़ उतरने में ही रेल बन जाती है।
तोरण और जयमाला के समय पहले लड़की और लड़के वाले मिलकर हंसी मजाक करके वरमाला आदि रस्में करवाते थे। आजकल स्टेज पर धुंए की धूनी छोड़ देते है। दूल्हा-दुल्हन को अकेले छोड़ दिया जाता है, बाकी सब को दूर भगा दिया जाता है और फिल्मी स्टाइल में स्लो मोशन में वह एक दूसरे को वरमाला पहनाते है, कभी कभार नकली आतिशबाजी भी होती है । दूल्हा, दुल्हन को सजाने मेकओवर पर भी ब्यूटिशियन खर्चा हजारों तक पहुंच चुका है। और वह भी ऐसे मेकअप पर जो मुश्किल से कुछ ही घंटे तक ही टिकता है, और तस्वीरों में आप खुद को भी नहीं पहचान पाते । दुर्भाग्य से ये यादें आपके साथ हमेशा ही रह जाती हैं । पहले तो औरते मिलकर दुल्हन को तैयार कर दिया करती थीं और हर रश्म का उपयुक्त गीत स्वयं गा लिया करती थीं । केवल कुछ घंटों के लिए इतना पैसा क्यों फूंका जाए? आप जो हैं वही रहिए ।
स्टेज के पास एक स्क्रीन लगी होती है, उसमें प्रीवेडिंग सूट की वीडियो चलती रहती है। उसमें यह बताया जाता है की शादी से पहले ही लड़की लड़के से मिल चुकी है और कितने अंग प्रदर्शन वाले कपड़े पहन कर कहीं चट्टान पर, कहीं बगीचे में, कहीं कुएं पर, कहीं बावड़ी में, कहीं श्मशान में, कहीं नकली फूलों के बीच अपने परिवार की इज्जत को नीलाम करके आ गई है । मर्यादा को पीछे छोड़ प्रीवेडिंग शान से अश्लील हो चले हैं। बाइक पर बैठ दुल्हन को उड़ा ले जाने के एक्शन दृश्य भी प्रीवेडिंग शूट का हिस्सा है। मोटे मोटे तौर पर भारत में प्रीवेडिंग शूट का माहौल 2010 के बाद ज़ोर पकड़ने लगा था। सन 2015 आते आते ये परंपरा आवश्यक सी हो गई और प्रोफेशनल भी। हम भारतीय बाहर से बुरी आदतें सीखते हैं लेकिन प्रीवेडिंग शूट की गंदी आदत बाहर से नहीं आई। विदेश में डेस्टिनेशन वेडिंग शूट का रिवाज ज़रूर रहा है लेकिन प्रीवेडिंग शूट की संक्रामक बीमारी भारत, जापान और चीन में अधिक फैली हुई है। इन तीन देशों में विवाह बहुत होते हैं। चीन में प्रीवेडिंग शूट का कारोबार अरबों में पहुंच चुका है। यही दशा भारत में भी हो गया है। वैसे हम भारतीयों की एक गंदी आदत भी है चीनी माल को अपनाने की ।
भारत में प्रीवेडिंग शूट एक अन्य रचनात्मक स्तर पर है। हालांकि इस कुप्रथा से लड़ने के लिए तीन समाज मैदान में कभी के उतर चुके हैं। मध्यप्रदेश से सबसे पहले प्रीवेडिंग शूट को प्रतिबंधित कर दिया गया। सिंधी समाज, माहेश्वरी समाज और जैन समाज ने इसे बैन कर रखा है। हमें भी इसके विरोध में आवाज उठानी पड़ेगी। समाज के लोगों के साथ बैठक कर, प्री वेडिंग शूट के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करना पड़ेगा। जो प्रस्ताव न माने, उसके ब्याह में जाने की जरूरत ही नहीं है। उनको कहिए कि जब पांच लाख प्रीवेडिंग शूट पर खर्च कर सकते हो तो और पांच लाख खर्च कर लोगों को भी किराए पर बुला ले। ये देश हमेशा से ऐसा नहीं था। सूरज बड़जात्या की विवाह आधारित फिल्में आने से पूर्व कम से कम मध्यमवर्ग और निम्न मध्यमवर्ग विवाह पर आवश्यक खर्चें ही करता था। नब्बे के दशक के बाद शादियों में ग्लैमर आ गया। ये ग्लैमर का धब्बा हमारे सनातन विवाहों के लिए बहुत ही अशुभ है। विवाह में अधिक फिजूल खर्ची, एक सामाजिक कुरीति है । जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है, दूल्हे की तलवार । जोकि बाकी जिंदगी में कभी भी काम नहीं आती है ।
मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से इस लेख के माध्यम से अनुरोध है की आपका पैसा है, आपने कमाया है। आपके घर खुशी का अवसर है खुशियां मनाएं, पर किसी दूसरे की देखा देखी नहीं। कर्ज लेकर अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करिएगा । 4 – 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है । दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए । अक्सर देखा जाता है जो लोग सात फेरे की समाप्ति के पश्चात पंडित जी को दक्षिणा देने में 1 घंटे डिस्कशन करते है। वहीं बारात में 5 से 10 हजार नाच गाने पर उड़ा देते हैं । मुझे दक्षिण भारतीय शादी ज़्यादा अच्छी लगती हैं, उनमें आडंबर और दिखावा कम होता है। लेकिन अब उनमें भी उत्तर भारतीय शादियों का थोड़ा थोड़ा असर दिखने लगा है । फालतू की फिजूल खर्ची में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है, मां-बाप की हाड़-तोड़ मेहनत और खून पसीने की नेक कमाई से पाई-पाई जोड़ कर कमाते हैं ।
उनके नवयौवन लड़के-लड़कियां बिना समझे अपने मां-बाप की हैसियत से विपरीत जाकर अनावश्यक खर्चा करते हैं। जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हो उन परिवारों के बच्चों को मां-बाप से जिद्द करके इस तरह की फिजूल खर्ची नहीं करवानी चाहिए। आजकल काफी जगह यह भी देखने को मिलता है कि बच्चे (जिनकी शादी है) मां-बाप से कहते है आप कुछ नहीं जानते, आपको समझ नहीं है, आपकी सोच वही पुरानी अनपढ़ों वाली रहेगी, यह कहते हुए अपने माता-पिता को गंवारू, पिछड़ी सोच का कहते हैं। पता नही आज का मेरा युवा व छोटा भाई-बहिन किस दिशा में जा रहे हैं। मुझे लगता है कि अब लोगों को सादगी से शादी करने का प्रण लेना चाहिए, ऐसे में विवाह ज़्यादा खूबसूरत लगता है। अपना दांपत्य जीवन सर उठा के, स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए !
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बहुत सुन्दर लेख है।
ज्ञानवर्धा जानकारी। विवाह में अधिक फिजूलखर्ची बिल्कुल बंद होनी चाहिए
Achi jankari hai…
Aapne thik kaha shadiyo mein Paisa bahut barbad hota hai.